सेंट्रल स्कवायर फाउंडेशन और ओमिदयार (Omidyar) नेटवर्क इंडिया ने जारी की प्राइवेट स्कूलों की स्थिति पर अपनी रिपोर्ट, जिसमे कहा गया की भारत के स्कूल जाने वाले लगभग 50 प्रतिशत बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं और इनकी शिक्षण क्षमता को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है
नई दिल्ली। गुणवत्ता पूर्ण स्कूल शिक्षा की दिशा में काम करने वाले गैर-लाभकारी संगठन सेंट्रल स्कवायर फाउंडेशन और सामाजिक प्रभाव पर केंद्रित निवेश करने वाली संस्था ओमिदयार नेटवर्क इंडिया ने आज भारत में प्राइवेट स्कूलों की स्थिति पर अपनी तरह की पहली रिपोर्ट को जारी कियारिपोर्ट में प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा के तरीकों को बेहतर बनाने का उल्लेख किया गया है। प्राइवेट स्कूल, भारत के स्कूल जाने वाले कुल बच्चों में से लगभग 50 प्रतिशत को शिक्षित करते हैं।
यह रिपोर्ट इस क्षेत्र पर मौजूदा शोध और साक्ष्यों का एक व्यापक विश्लेषण है। इसमें छात्र शिक्षा को बेहतर बनाने पर ध्यान देने के साथ प्राइवेट स्कूलों के संचालन को कारगर बनाने के लिए किए जाने वाले सुधारों का सुझाव दिया गया है। इसका लक्ष्य इस क्षेत्र से जुड़े नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं, परोपकारियों और शिक्षकों सहित अन्य हितधारकों के लिए एक रेडी रेकनर तैयार करना है
शहरों में लगभग 70 प्रतिशत बच्चे और ग्रामीण इलाकों में 25 प्रतिशत बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं। 16 भारतीय शहरों में 50 प्रतिशत से अधिक बच्चे प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करते हैं। आकांक्षी माता-पिता kee बढ़ती मांग प्राइवेट स्कूलों में बढ़ते नामांकन का बड़ा कारण है । अधिकांश अभिभावक - लगभग 70 प्रतिशत- स्कूल फीस के रूप में प्रति माह 1000 रुपए से भी कम का भुगतान कर रहे हैंरिपोर्ट में कहा गया है कि प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के 73 प्रतिशत अभिभावकों का मानना है कि यह स्कूल बेहतर शिक्षण वातावरण प्रदान करते हैं। हालांकि, छात्रों की पृष्ठभूमि को समायोजित करने के बाद प्राइवेट स्कूलों में छात्रों का प्रदर्शन सरकारी स्कूलों की तुलना में मामूली बेहतर है। ग्रामीण इलाकों के प्राइवेट स्कूलों में 5वीं कक्षा में पढ़ने वाले लगभग 35 प्रतिशत छात्र कक्षा 2 की किताब पढ़ने में असमर्थ हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अभिभावकों के पास शिक्षा के प्रदर्शन के आधार पर स्कूलों का चयन करते समय सही निर्णय लेने के लिए साधनों की कमी होती है। बोर्ड परीक्षाएं, शिक्षण गुणवत्ता का आंकलन करने के लिए कुछ विश्वसनीय और मानकीकृत मैट्रिक्स में से एक हैं। स्कूल शिक्षा के अंतिम कुछ वर्षों में होने वाली ये परीक्षाएं अभिभावकों के लिए शिक्षा के शुरुआती वर्षों में स्कूलों की गुणवत्ता का पता लगाना मुश्किल बना देती हैं। इसके अलावा, भारत में लगभग 60 प्रतिशत प्राइवेट स्कूलों में बोर्ड परीक्षा वाली कक्षाएं ही नहीं हैं।
अमिताभ कांत, सीईओ, नीति आयोग, ने एक डिजिटल कार्यक्रम में रिपोर्ट को जारी किया और कहा, “राष्ट्र निर्माण की दिशा में कार्य कर रहे प्राइवेट स्कूल सेक्टर के बिना एक शिक्षित और साक्षर भारत बनाना संभव नहीं है। इसे ठीक करने पर हमें ध्यान देना होगा। मार्गदर्शक के रूप में एक्सेस, इक्विटी और क्वालिटी का उपयोग कर हमें सुधार करने की आवश्यकता है। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कि हम अपना ध्यान इनपुट की मॉनिटरिंग से हटाकर आउटपुट की मॉनिटरिंग पर लगाएं। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा इस सरकार की प्राथमिकता रही है और नीति आयोग सभी हितधारकों के साथ मिलकर एक मॉडल रेग्यूलेटरी एक्ट बना रहा है। मुझे पूरा विश्वास है कि इस रिपोर्ट में उल्लेखित संदर्भो और परिणामों के आधार पर हमें शीघ्र ही बेहतर परिणाम देखने को मिलेंगे।"
प्राइवेट स्कूल केवल अभिजात वर्ग के बीच ही लोकप्रिय नहीं हैं। इस सच्चाई को उजागर करते हुए श्री आशीष धवन, संस्थापक-अध्यक्ष, सीएसएफ ने इस बात पर जोर दिया कि कमजोर वर्ग के अधिकांश परिवार भी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कलों में भेजते हैं। "आज भारत में प्राइवेट स्कल सेक्टर दनिया में तीसरा सबसे बड़ा स्कूल सिस्टम है। यह संख्या मुख्य रूप से निम्न और मध्यम आय वाले अभिभावकों के कारण है, जो यह सोचते हैं कि प्राइवेट स्कूलों में उनके बच्चे बेहतर शिक्षा ग्रहण कर पाएंगे। अब एक ऐसी प्रणाली विकसित करना बहुत महत्वपूर्ण हो गया है, जो अभिभावकों को NEP (नेशनल एजुकेशन पालिसी) के सुझाव के अनुसार कक्षा 3, 5 और 8 में मुख्य चरण की परीक्षाओं (key stages examination) के आधार पर मूल्याकंन-आधारित जानकारी उपलब्ध कराए। अभिभावक इस जानकारी का उपयोग स्कूलों की गुणवत्ता की तुलना करने और अपने बच्चों के लिए बेहतर स्कूल का चुनाव करने में कर सकते हैं।”
अभिभावकों के बीच गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए मांग पैदा करने के बारे में बोलते हुए, रूपा कुडवा, प्रबंध निदेशक, ओमिदयार (Omidyar) नेटवर्क इंडिया, ने कहा, “हमें स्कूल का चुनाव करते समय शिक्षा गुणवत्ता पर आधारित एक सही निर्णय लेने के लिए अभिभावकों को सशक्त बनाने की जरूरत है। शिक्षा पर स्कूलों का प्रदर्शन कैसा है इस बारे में सही जानकारी के अभाव में, अभिभावक स्कूल के इंफ्रास्ट्रक्चर या अंग्रेजी बोलने जैसे मापदंडों को महत्व देते हैं। परोपकारी (Philanthropy) पूंजी तीन प्रमुख क्षेत्रों - जागरूकता फैलाने, स्कूलों द्वारा स्वयं पारदर्शिता को बढ़ाने और अभिभावकों एवं स्कूलों के बीच जुड़ाव की गुणवत्ता को बेहतर बनाने - में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।”
रिपोर्ट लॉन्च के बारे में : मनिपाल ग्लोबल एजुकेशन के चेयरमैन, मोहनदास पई, ने एक विशेष संबोधन दिया। उन्होंने शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने और भारत के बच्चों को बेहतर रोजगार के लिए 21वीं सदी का कौशल हासिल करने में मदद के लिए साहसिक सुधार की आवश्यकता के बारे में बात की। अन्य प्रमुख वक्ताओं में भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और प्रवक्ता बैजयंत पांडा और लेखक व प्रोक्टर एंड गैम्बल इंडिया के पूर्व सीईओ गुरचरण दास शामिल थे
रिपोर्ट को जारी करने के बाद दो पैनल चर्चा का आयोजन किया गया। पहला सत्र 'संकट से सीखें: कोविड-19 के बाद प्राइवेट स्कूल सेक्टर का पुनर्गठन' पर था, जिसमें वैजयंत पांडा, गुरचरण दास, एसआरएफ लिमिटेड के चेयरमैन अरुण भरत राम और गीता गांधी किंगडन, चेयरपर्सन, एजुकेशन इकोनॉमिक्स एंड इंटरनेशनल डेवलपमेंट, इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन ने प्राइवेट स्कूलों को बेहतर शिक्षा के लिए कैसे प्रोत्साहित किया जा सकता है पर चर्चा की। इस सत्र का संचालन आशीष धवन द्वारा किया गया।
दूसरा सत्र ‘प्राइवेट स्कूल सेक्टर में सुधारों की आवश्यकता: वॉयस फ्रॉम दि ग्राउंड' पर था, जिसमें प्रभात जैन, सह-संस्थापक, पाथवेज वर्ल्ड स्कूल और पाथवेज अर्ली ईयर्स, कुलभूषण शर्मा, अध्यक्ष, एनआईएसए और अध्यक्ष, फेडरेशन ऑफ प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन, हरियाणा, भुवन आनंद, शोध निदेशक, सेंटर फॉर सिविल सोसाएटी और विकास झुनझुनवाला, संस्थापक और सीईओ, सनसाइन स्कूल के बीच बहुत सार्थक चर्चा हुई। दिलीप ठकोरे, सह-संस्थापक और प्रबंध संपादक, एजुकेशन वर्ल्ड ने सत्र का संचालन किया।